सुलग रहे अदम्य मन का ज्वाला है
घुल रहे असंख्य प्रवीणता का हवाला है
बिना घिसे चमक क्या आई है
चमकहीन सभ्यता हमने लाई है
प्रेरणा नहीं उनमें, मैं प्रतिशतता भरते जाऊ
बिना जले बाती में, मै प्रकाश कहाँ से लाऊ
विरले बिना स्वृण के, चमके होगें
संकेतन दीप जगत में, जहाँ दमके होगें
भूले सार तन खंगाल उठो
विकट संकट सवाल उठो
सममूल्यता उर में हलचल उठो
अमित संकल्प भव्यबाल उठो
वैभवबुद्धि व्याकुल शिथिर उठो
उठो प्रतिभावान स्वर उठो
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मनंग राय
मिर्जापुर, उत्तरप्रदेश
(नोट: यह रचना ‘नव अंकुरित प्रोत्साहन’ योजना के तहत प्रकाशित की गयी है|)
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